दोस्तों हाइड्रोपोनिक्स या जिससे आजकल अर्बन फार्मिंग भी कहा जाता है। बहुत ही बेहतरीन कृषि प्रणाली है। यह मिटटी के बिना बागवानी की एक आधुनिक तकनीक है। जिसमे मिटटी रहित खेती की जाती है ,
मतलब इस तकनीक में खेती के लिए मिटटी की जरूरत ही नहीं पौधों को विकसित करने के लिए हाइड्रोपोनिक्स का उपयोग करने का प्राथमिक लाभ यह है कि यह बहुत तेज विकास दर होती है। मिट्टी आधारित रोपण विधियों की तुलना में विकास दर 30 प्रतिशत तक तेज हो सकती है। इस विधि से अधिक मात्रा में उपज व अधिक गुणवत्ता युक्त फसल बड़ी ही सरलता से ले सकते है।
दोस्तों यदि आप हाइड्रोपोनिक विधि से बागवानी करना चाहते है तो आपको प्रत्येक हाइड्रोपोनिक सिस्टम को पूरी तरह से समझने की आवश्यकता होगी, जो आपके लिए यह निर्धारित करना आसान बनाता है कि आपके लिए कौन सी प्रणाली सही है। विभिन्न प्रकार की हाइड्रोपोनिक प्रणालियों के बारे में हाइड्रोपोनिक ई-बुक में सपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई गई है।
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मृदा या मिटटी के बिना बागवानी करने के विज्ञान जिसे हाइड्रोपोनिक्स कहा जाता है। केवल पानी में या कंकड़ों के बीच नियंत्रित जलवायु में बिना मिट्टी के पौधे उगाने की तकनीक को हाइड्रोपोनिक कहते हैं। इसे हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली भी कहा जाता है। इस प्रणाली में पारंपरिक बागवानी की तुलना में कहीं अधिक, जल्दी व आसानी से उच्च गुणवत्ता युक्त सब्जियां उगाई जा सकती हैं।
हाइड्रोपोनिक शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों ‘हाइड्रो’ (Hydro) तथा ‘पोनोस (Ponos) से मिलकर हुई है। हाइड्रो का मतलब है। पानी, जबकि पोनोस का अर्थ है कार्य।
हाइड्रोपोनिक्स खेती की एक आधुनिक तकनीक है। जिसका अभिप्राय पानी द्वारा खेती से है। कम जगह होते हुए भी एक स्थायी तरीके से हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम से बड़ी मात्रा में, स्वास्थ्यप्रद भोजन को विकसित किया जा सकता है।
बड़े बड़े शहरों में यह तकनीक बहुत ज्यादा अपनाई जा रही है। दरअसल, बढ़ते शहरीकरण और बढ़ती आबादी के कारण फसल और पौधों के लिये जमीन की कमी भी होती जा रही है।
हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम में आप अपने फ्लैट में या घर के किसी कोने में या छत पर भी बड़े आराम से पौधे और सब्जियाँ आदि उगा सकते हैं। आम खेती के मुकाबले इस तकनीक में पढ़ने 3 गुना अधिक पैदावार करते है
यह तकनीक लोगों को उन स्थानों पर भी भोजन उगाने की क्षमता प्रदान करता है, जहां पारंपरिक कृषि संभव नहीं है।
आमतौर पर हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली में टमाटर, मिर्च, खीरे, लेट्यूस, पालक, बैंगन, शिमला मिर्च, करेला आदि हर प्रकार की सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है।
हाइड्रोपोनिक प्रणालियों में पौधों को विभिन्न प्रकार से पोषक तत्व प्रदान किये जाते है जिसमे कार्बनिक खाद, रासायनिक उर्वरक या कृत्रिम विधि द्वारा तैयार किये गए पोषक तत्व आदि प्रमुख है।
हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली कई फायदे भी प्रदान करती है, उनमें से एक है कृषि के लिए पानी के उपयोग में कमी, अर्थार्थ जहाँ साधारण खेती में 1 किलोग्राम टमाटर उगाने के लिए 70 लीटर पानी का इस्तेमाल होता है, हाइड्रोपोनिक्स में केवल 20 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।
दूरसे शब्दों में कहें तो यह एक आधुनिक तकनीक की खेती जिसमें पौधों की वृद्धि, उत्पादकता पोषक तत्वों, का स्तर पानी द्वारा वैज्ञानिक तरीके से नियंत्रित की जाती है।
खेती करने का यह तरीका बड़े बड़े शहरों और महानगरों में काफी लोकप्रिय होता जा रहा है और आधुनिक कृषि पद्धतियों पर भी इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है,
पौधों की उत्तम वृद्धि और बेहतर उपज व उत्पादन पाने के लिए पानी के साथ-साथ विशिष्ट मात्रा के दिए गए पोषक तत्त्वों द्वारा समृद्ध किया जाता है
हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली के कुछ बुनियादी मुख्य प्रबंधन कार्य की निम्नलिखित है
Plant & Root Support System:- आम तौर पर हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम में, पौधे और पौधे की जड़ों को सीधा ऊपर की और बढ़ने के लिए सहारा देने व्यवस्था की जाती है, जिसके लिए कई माध्यमों और प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है।
Supply of Nutrient:- एक और जहाँ पारंपरिक खेती में पौधे पानी और पोषक तत्त्वों को मिटटी से ग्रहण करते है वहीं हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली में संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों को पौधों तक पहुंचाया जाता है।
Supply Of Oxygen:- मृदा आधारित खेती में, पौधों को मिट्टी से ऑक्सीजन प्राप्त होता है, परन्तु हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली में पौधे पानी से ऑक्सीजन प्राप्त करते है यह ठीक वैसे ही है जैसे एक्वेरियम टैंक में मछलियों के लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था की जाती है।
दोस्तों हम आपके लिए लेकर आये हैं बिलकुल ही सरल और आसान एक्सपर्ट लेबल का हाइड्रोपोनिक्स कोर्स हिंदी में । जिसके बाद आप अपना खुद का एक हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम तैयार कर सकते है ,
इस कोर्स में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के विभिन्न पहलुओं को समझने में सहायता मिलेगी, की यह तकनीक क्या है और कैसे कार्य करती है । और कैसे आप आसानी से इस विधि का प्रयोग आपने घर में लाभ ले सकते है।
इसमें हम आपको बताएँगे के कैसे पौधों के लिए विशिष्ट पोषक घोल (खाद) तैयार किया जाता है, किन किन खादों और पोषक तत्वों की पौधों को कब जरूरत होती है , और पोधों की जरूरत के मुताबिक़ सही मात्रा में आप खुद आपने हाथो से इसे तैयार कर सकेंगे , दोस्तों इसके लिए लिए आपको सहयोग राशि के रूप में मात्र रु 199/- देने होंगे । तो आज ही डाउनलोड करें ऑनलाइन फुल कोर्स।
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दोस्तों जैसा की आप जानते है, कृषि से मिलने वाले फसल अवशेष जैसे की भूसा, आदि कम घनत्व वाले रेशे होते हैं, इनमें प्रोटीन, घुलनशील कार्बोहाइड्रेट, खनिज एवं विटामिन कम मात्रा में पाए जाते हैं गुणवत्ता एवं मात्रा दोनों मापदंडों के हिसाब से देश में फीड की कमी है जो कि पशुधन विकास में एक मुख्य बाधा है।
हर साल देश में पानी की भी कमी होती जा रही है, और हमारे खेती का आधार समझे जाने वाले जानवरो के हरे चारे कि समस्या दिन प्रति दिन बढती जा रही है । हमारे देश मे दूध कि मांग भी बहुत ज्यादा है, और ज्यादा दूध उत्पादन करने के लिये हरे चारे कि हमें बहुत आवश्यकता है ।
इसलिये हमे हरा चारा उत्पादन के लिये कुछ अच्छे उपाय कि जरुरत है । इन्ही उपायो में से एक है हाइड्रोपोनिक्स चारा उत्पादन हमारे लिये हाइड्रोपोनिक्स चारा उत्पादन एक अच्छा और कारगर विकल्प साबित हो सकता है ।
तो चलिए जानते है हाइड्रोपोनिक्स चारा उत्पादन के बारे मे।
क्या है हाइड्रोपोनिक्स चारा उत्पादन और कैसे हम इसे बिना मिटटी के उत्पादन कर सकते है।
दोस्तों बिना मिट्टी के नियंत्रित तापमान में पौधे उगाने की तकनीक को हाइड्रोपोनिक्स कहते है. मुख्य रूप से हाइड्रोपोनिक्स चारा प्लास्टिक की छिद्रयुक्त ट्रे में उगाया जाता है।
मक्का, ज्वार या बाजरा के दानो को 15 से 30 डिग्री सेल्सिअस तापमान पर लगभग 80 से 85 प्रतिशत आर्द्रता मे उगाया जाता है. ये चारा 7 से 8 दिन मे तैयार हो जाता है ।
हाइड्रोपोनिक्स में चारा उत्पादन भौगोलिक स्थिति, क्षेत्र के वातावरण एवं बीज की उपलब्धता पर निर्भर करता है। उत्पादन के लिये बोए गए बीज साफ, साबुत, जीवाणु रहित एवं अच्छी गुणवत्ता के होने चाहिए। अगर यह कार्य नियंत्रित तापमान में किया जाय तो इस तकनीक से बहुत अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है ।
इसमें बीजों को पानी में भिगोया जाता है, जिससे की बीज का अंकुरण शुरू हो सके और बीज आसानी से वृद्धि कर पौधा तैयार कर सके। सामान्यत: बीजों को जूट के थैलों में रखकर अच्छी तरह से बंद करके उन्हें भिगो कर 1 से 2 दिन के लिये रखा जा सकता है, ये बीज अब अंकुरित हो चुके होते हैं इसके बाद इन्हें प्लास्टिक की ट्रे में फैलाया जाता है ।
अंकुरित बीजों की सिंचाई दिन में कई बार की जाती है । इसमें इस बात का ध्यान रखना होता है की पौधे की जड़ें हमेशा भीगी हुई रहे।
छोटे ग्रीन चारा उत्पादन की सिंचाई के लिए साधारण स्प्रे या पम्पिंग स्प्रे का उपयोग किया जाता है । परंतु अगर बड़ी इकाई है तो आटोमेटिक स्प्रेयर उपयोग में लाए जा सकते हैं।
हम अगर हाइड्रोपोनिक्स में खर्च होने वाले पानी की मात्रा की बात करें तो यह जानने में बहुत ही रोचक होगा कि सामान्य खेती में उपयोग होने वाले पानी की तुलना में इसमें 3 से 5 प्रतिशत ही पानी की आवश्यकता होती है।
एक किलोग्राम मक्का की घास पैदा करने के लिये 1 लीटर (अगर पुन:) उपयोग में ले लिया जाये) से लेकर 3.0 लीटर जल की आवश्यकता होती है।
अपनी आवश्यकता के अनुसार 2 फिट बाय 1.5 फिट के ट्रे ले, या आपको जितना चारा उगाना है उस हिसाब से आप ट्रे ले सकते है ।ट्रे मे अंकुरित बीज फैलाकर आप इन्हे 6 से 7 फिट एक के ऊपर एक ऊंचाई पर रख सकते है । ऊंचाई दूरी एक से डेढ़ फुट की होनी चाहिए ।
जिससे कम जगह में ज्यादा उत्पादन ले सकते है।
अंकुरित बीजो पर 7 से 10 दिन तक दिन मे 6 से 8 बार पानी का स्प्रे करते रहे । एक ट्रे मे 1 किलो बीज से हमे 10 किलो तक का 6 से 8 इंच तक लंबा हरा चारा आपको मिल जायेगा ।
यह चारा दुधारु पशुओं के लिये बहुत उपयोगी होता है। चारा पौष्टिक होने के कारण दुध मे बढोतरी होती है । कम लागत वाले घरेलु ग्रीन हाउस में 1 किलोग्राम मक्का से 7 से 10 दिनों में 8 से 10 किलोग्राम मक्का का चारा उगाया जा सकता है।
30-300 किलोग्राम ताजा चारा उगाने के लिये लगाई गयी इकाई में लगभग 2000 से 50,000 तक लागत आ सकती है ।
ऐसे क्षेत्रों में जहाँ भूमि या पानी की कमी होती है वह इस विधि से सफलता पूर्वक उत्पादन किया जा सकता है। क्योंकि इसमें सामान्य कृषि से कम पानी खर्च होता है एवं एक बार उपयोग में लिए गए पानी को दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है।
इससे हरा चारा अधिक प्राप्त किया जा सकता है।
इसमें कीट का खतरा नहीं रहता है।
चारे को आसानी से हार्वेस्ट किया जा सकता है।
पोषक तत्वों को नियंत्रित मात्रा में पानी के साथ ही घोल कर डाला जाता है,
इसलिए किसी प्रकार की अतरिक्त खाद प्रयोग नहीं किया जाता।
हाइड्रोपोनिक्स विधि द्वारा उत्पादन के लिए जिन ढांचों का उपयोग किया जाता हैं, उन्हें ग्रीन हाउस कहते हैं ये ग्रीन हाउस दो प्रकार के होते हैं ।
1. हाईटेक ग्रीन हाउस चारा इकाई
2. साधारण या कम खर्च वाले ग्रीन हाउस चारा इकाई
यह आसानी से कम लागत में तैयार किया जा सकता है एवं इसे छोटे किसान भी आराम से लगा सकते हैं इस इकाई के ढाँचे को बांस, लकड़ी, लोहे या PVC पाइप्स आदि से सेल्फ बना कर ढांचा तैयार किया जा सकता है।
इसमें सिंचाई के लिये हाथ से चलाये जाने वाले छोटे-छोटे फव्वारे जो कि आटोमेटिक भी हो सकते हैं, उपयोग में लाये जाते हैं। चूंकि ये वातानुकूलित नहीं होते है । उचित तापमान का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी होता है ।
दिनों के अनुसार चारे का वृद्धि चक्र
पहला दिन – पहले दिन पानी में भिगोये हुए बीजों को ट्रे में जो कि शेल्फ में रखी होती हैं, में सामान रूप से फैला दिया जाता है।
दूसरा दिन – दूसरे दिन बीज अंकुरित होने शुरू हो जाते हैं।
तीसरा और चौथा दिन – जड़ों का एक कालीन नुमा गुथा हुआ जाल दिखाई देने लगता है।
पांचवा एवं छठा दिन – जड़ों एवं तने की पूर्ण वृद्धि दिखा देने लगती है।
सांतवा या आठवां दिन – इसे फीडिंग डे कहा जाता है, इस समय 8-10 इंच वृद्धि हो जाती है एवं इस समये हरे चारे को ट्रे से निकालकर पशुओंको खिलाया जा सकता है।
यह चारा हरा, पौष्टिक, स्वादिष्ट व् आसानी से पचने वाला होता है।
इस चारे में विटामिन, खनिज एवं उत्प्रेरक भरपूर होते हैं।
इसमें नमी की मात्रा अधिक होने से जानवरों में पेट की समस्या नहीं होती
विभिन्न प्रयोगों से देखा गया है कि इसे खिलाने से दूध उत्पादन में 8 से 13.7 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है
7. पशुओं को दिए जाने वाले फीड में अगर यह चारा मिलाया जाये तो वह 5 प्रतिशत अधिक पाचन योग्य प्रोटीन एवं 4.9 प्रतिशत अधिक पाचक पदार्थ प्रदान करेंगे।
घरेलु हाइड्रोपॉनिक्स चारा उत्पादन कक्ष बनाने के लिए मुख्य सामाग्री
1. हाइड्रोपोनिक प्लैक्टिक ट्रे 2. ट्रे रखने के लिए रैक या स्टैंड 3. पानी का छिड़काव करने के लिए स्प्रेयर पंप 4. ग्रीनहाउस शेड का कपड़ा 5. व घुलनशील पोषक तत्व
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